भौतिक भूगोल (Physical geography)
भौतिक भूगोल (Physical geography)
भूगोल की एक प्रमुख शाखा है जिसमें पृथ्वी के भौतिक स्वरूप का अध्ययन किया जाता हैं। यह धरातल पर अलग अलग जगह पायी जाने वाली भौतिक परिघटनाओं के वितरण की व्याख्या व अध्ययन करता है, साथ ही यह भूविज्ञान, मौसम विज्ञान, जन्तु विज्ञान और रसायनशास्त्र से भी जुड़ा हुआ है। इसकी कई उपशाखाएँ हैं जो विविध भौतिक परिघटनाओं की विवेचना करती हैं।
भूगोल ज्ञान की वह शाखा है जिसमें भूतल पर तथ्यों के स्थानिक वितरण, पारस्परिक संबंधों तथा उनके साथ मानवीय अंतर्क्रियाओं का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। यह मूलतः तथ्यों के क्षेत्रीय वितरण तथा स्थानिक भिन्नताओं के अध्ययन से संबंधित विज्ञान है।
तथ्यों की प्रकृति के अनुसार को दो प्रधान शाखाओं में विभक्त किया जाता है- भौतिक भूगोल (Physical geography), और मानव भूगोल (HUMAN GEOGRAPHY) । भौतिक भूगोल में प्राकृतिक तथ्यों जैसे शैल, भूकंप, ज्वालामुखी, उच्चावच, संरचना, जलवायु, प्राकृतिक वनस्पति एवं जीव-जंतु, वायुमंडलीय तथा सागरीय दशाओं आदि का अध्ययन किया जाता है। अध्ययन क्षेत्र के आधार पर भौतिक भूगोल की चार प्रमुख शाखाएं हैं- भू-आकृति विज्ञान (स्थलमंडल), जलवायु विज्ञान (वायुमंडल), समुद्र विज्ञान (जलमंडल), और जीव भूगोल (जीव मंडल) ।
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मानव भूगोल में मानवीय तथ्यों जैसे मानव प्रजाति, जनसंख्या, मानव व्यवसाय, अधिवास, अंतर्राष्ट्रीय संबंध आदि का अध्ययन सम्मिलित होता है।
भूगोल (Geography) प्राकृतिक विज्ञानों के निष्कर्षों के बीच कार्य-कारण संबंध स्थापित करते हुए पृथ्वीतल की विभिन्नताओं का मानवीय दृष्टिकोण से अध्ययन ही भूगोल का सार तत्व है। पृथ्वी की सतह पर जो स्थान विशेष हैं उनकी समताओं तथा विषमताओं का कारण और उनका स्पष्टीकरण भूगोल का निजी क्षेत्र है।
भूगोल एक ओर अन्य श्रृंखलाबद्ध विज्ञानों से प्राप्त ज्ञान का उपयोग उस सीमा तक करता है जहाँ तक वह घटनाओं और विश्लेषणों की समीक्षा तथा उनके संबंधों के यथासंभव समुचित समन्वय करने में सहायक होता है। दूसरी ओर अन्य विज्ञानों से प्राप्त जिस ज्ञान का उपयोग भूगोल करता है, उसमें अनेक व्युत्पत्तिक धारणाएँ एवं निर्धारित वर्गीकरण होते हैं। यदि ये धारणाएँ और वर्गीकरण भौगोलिक उद्देश्यों के लिये उपयोगी न हों, तो भूगोल को निजी व्युत्पत्तिक धारणाएँ तथा वर्गीकरण की प्रणाली विकसित करनी होती हे।।
स्थिति एवं विस्तार
- भारत के मूख्य भू-भाग का अक्षांशीय विस्तार 8° 4′ से 37° 6′ उत्तर है।
- भारत के मुख्य भू-भाग का देशांतरीय विस्तार 68° 7′ से 97° 25′ पूर्व है।
- उत्तर दक्षिण विस्तार 3214 कि. मी. है।
- पूर्व पश्चिम विस्तार 2933 कि. मी. है।
- विश्व की कुल भूमि का 2.4% भाग भारत में है।
- भारत पूर्णतः उत्तरी गोलार्द्ध तथा पूर्वी गोलार्द्ध में आता है।
- कर्क रेखा (23° 30′ उत्तरी अक्षांश) भारत के लगभग मध्य से गुजरती है।
- भारत की मानक मध्यान्ह (82° 30′ पू. देशांतर) रेखा देश के लगभग मध्य से गुजरती है।
- भारत तीन तरफ से पानी से घिरा हुआ है अर्थात अरब सागर (पश्चिम), बंगाल की खाड़ी (पूर्व) तथा हिन्द महासागर (दक्षिण) से।
- कन्याकुमारी भारतीय मुख्य भू-भाग का दक्षिणतम् बिन्दु (8° 4′ उत्तरी अक्षांश) है।
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स्थिति का महत्त्व
- क्षेत्र के आधार पर भारत संसार का सातवाँ बड़ा देश है।
- इसकी स्थलसीमा 15,200 किलोमीटर तथा 6100 कि. मी. लंबी तट रेखा है।
- अंडमान और निकोबार महत्त्वपूर्ण द्वीप समूह है जो बंगाल की खाड़ी में स्थित है तथा लक्षद्वीप अरब सागर में स्थित है।
- भारत को 28 राज्यों और 7 संघ राज्य क्षेत्रों में विभाजित किया गया है।
- भारत की हिन्द महासागर में स्थिति सामरिक महत्त्व की है।
- इसका यूरोप और अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया, पूर्वी एशिया और ओशिनिया के बीच समुद्री मार्गों पर नियंत्रण है।
- समुद्र और स्थल सीमाओं के संदर्भ में भारत की स्थिति बहुत ही अच्छी है।
भौतिक भूगोल
(2) जलवायु विज्ञान (Climatology) : इसके अन्तर्गत जलवायविक तत्वों, उनकी उत्पत्ति एवं संघटन तथा प्राकृतिक पर्यावरण पर उनके प्रभावों और उससे सम्बन्धों का अध्ययन सम्मिलित होता है। इसकी दो उपशाखाएं हैं-
- (क) भौतिक जलवायु विज्ञान (Physical Climatology) जिसमें मौसम और जलवायु के तथ्वों तथा प्रक्रमों से सम्बन्धित अध्ययन किया जाता है, और
- (ख) प्रादेशिक जलवायु विज्ञान (Regional Climatology) के अन्तर्गत विश्व के विशिष्ट प्रदेशों की जलवायु का अध्ययन सम्मिलित होता है।
(4) चिकित्सा भूगोल (Medical Geography) : इसमें मानवीय बीमारियों, रोगों, दुर्भिक्ष आदि के स्थानिक वितरण का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। इसमें मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारकों का अध्ययन भी सम्मिलित होता है। यह पर्यावरण भूगोल के अधिक समीप है जिसके कारण कुछ लोग इसे पर्यावरण भूगोल की ही एक शाखा मानते हैं।
मानव भूगोल,
भूगोल की प्रमुख शाखा हैं जिसके अन्तर्गत मानव की उत्पत्ति से लेकर वर्तमान समय तक उसके पर्यावरण के साथ सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता हैं। मानव भूगोल की एक अत्यन्त लोकप्रिय और बहु अनुमोदित परिभाषा है, मानव एवं उसका प्राकृतिक पर्यावरण के साथ समायोजन का अध्ययन। मानव भूगोल में पृथ्वी तल पर मानवीय तथ्यों के स्थानिक वितरणों का अर्थात् विभिन्न प्रदेशों के मानव-वर्गों द्वारा किये गये वातावरण समायोजनों और स्थानिक संगठनों का अध्ययन किया जाता है। मानव भूगोल में मानव-वर्गो और उनके वातावरणों की शक्तियों, प्रभावों तथा प्रतिक्रियाओं के पारस्परिक कार्यात्मक सम्वन्धों का अध्ययन, प्रादेशिक आधार पर किया जाता है।
मानव भूगोल का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। यूरोपीय देशों, पूर्ववर्ती सोवियत संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका था भारत के विश्वविद्यालयों में इसके अध्ययन में अधिकाधिक रूचि ली जा रही है। पिछले लगभग ४० वर्षों में मानव भूगोल के अध्ययन क्षेत्र का वैज्ञानिक विकास हुआ है और संसार के विभिन्न देशों में वहाँ की जनसंख्या की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक उन्नति के लिये संसाधन-योजना में इसके ज्ञान का प्रयोग किया जा रहा है।
रेटजेल के अनुसार, "मानव भूगोल के के दृश्य सर्वत्र पर्यावरण से संबंधित होता है जो की स्वयं भौतिक दशाओं का एक योग्य होता है ellsworth एलटी गठन के अनुसार मानव भूगोल मानवीय क्रियाकलापों तथा मानवीय गुणों के भौगोलिक वातावरण से संबंधों की प्रकृति एवं उसके विवरण का अध्ययन है
रेटजेल की शिष्या व प्रसिद्ध अमेरिकन भूगोलवेत्ता एलन सैम्पल के अनुसार " मानव भूगोल चंचल मानव और अस्थायी धरती के पारस्पपरिक परिवर्तनशील सम्बन्धो का अध्ययन है ।
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Sundar
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ReplyDeletenrgrfsioooiu
ReplyDeletekl;gfop;iokoppodsiofok
ReplyDeletel;grjkpof[]ompvi8la
ReplyDeleteSupb bro
ReplyDelete📝📝👍👍👍
ReplyDeleteMind blowing
ReplyDeleteA1👍
ReplyDeleteSupb
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